Monday, February 28, 2011

हर वक्त काम का जुनून क्यों


क्या आप हमेशा थकान, तनाव या दबाव महसूस करती हैं? घरेलू कार्य या बच्चे के प्रोजेक्ट्स ऑफिस तक भी आपका पीछा नहीं छोडते? क्या घर पहुंचने के बाद वॉशिंग मशीन में कपडों का ढेर इतना होता है कि पसंदीदा टीवी सीरियल्स तक नहीं देख पातीं? यहां तक कि नींद में भी आपको काम के सपने आते हैं?
अगर आप हमेशा थकान या दबाव महसूस करती हैं, अपराध-बोध से ग्रस्त हैं, घरेलू समस्याएं आपके जेहन पर हमेशा हावी रहती हैं तो इसका अर्थ है कि सुपर मॉम सिंड्रोम ने आपको जकड रखा है।
खतरा कहां है
एक लेखिका अपने ब्लॉग पर लिखती हैं कि कुछ वर्ष पूर्व स्पॉन्डलाइटिस ने उन्हें इस तरह घेरा कि काम करना उनके लिए संभव नहीं रहा। वह कई महीने व्हील चेयर पर रहीं। पत्नी, मां, डाइटीशियन, शिक्षिका होने के अलावा वह मॉडल बेटी की मैनेजर भी थीं। जिम्मेदारियों के बीच कभी सेहत का ध्यान नहीं रखा, जिसका नतीजा यह हुआ कि वह बिस्तर पर पड गई।
विशेषज्ञ कहते हैं, सुपर मॉम सिंड्रोम तनाव, अवसाद, बेचैनी, अनिद्रा, दबाव व अकेलेपन की भावना भर देता है। यह कभी जीवन का आनंद नहीं उठाने देता।
एक ताजा रिसर्च कहती है कि स्त्रियां अपनी हर परेशानी के लिए खुद को दोषी मानती हैं, जबकि पुरुष ऐसा नहीं करते। लंदन के डेली मेल में छपी इस स्टडी के मुताबिक 75 प्रतिशत स्त्रियों ने माना कि जब से वे मां बनीं, उनमें ग्लानि व अपराधबोध अधिक पनप गया। खुद को दोषी समझने की यह प्रवृत्ति संबंधों, पेरेंटिंग, सेहत जैसे पहलू पर अधिक पनपती है।
बचें इस जुनून से
मूलचंद मेडसिटी, नई दिल्ली में मनोचिकित्सा एवं वयस्क स्वास्थ्य मनोविज्ञान के कंसल्टेंट डॉ. जितेंद्र नागपाल कहते हैं, करियर और घर के बीच तालमेल बिठाने वाली ज्यादातर स्त्रियों के लिए पेरेंटिंग सबसे मुश्किल काम है। मगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो सुपर मॉम सिंड्रोम से काफी हद तक बचा जा सकता है।
1. संतुलन बिठाना सीखें। प्राथमिकता सूची में उन्हीं कामों को रखें, जो वास्तव में उस वक्त जरूरी हैं। जैसे बच्चे..। घरेलू काम उम्र भर के हैं, लेकिन उनका बचपन फिर नहीं लौटेगा।
2. स्वास्थ्य की कीमत समझें। किसी भी समस्या को नजरअंदाज न करें। ऐसा न हो कि जब तक इसका महत्व समझें, देर हो चुकी हो और आप कई बडी बीमारियों से घिर जाएं।
3. हर पल का लुत्फ उठाएं। दोस्तों के करीब रहें। परिवार के साथ घुले-मिलें। कल की चिंता में अपने आज को न खोएं।
4. बच्चों को हर सुविधा दे सकती हैं, इस दबाव में न रहें। इससे अपराधबोध, विफलता व निराशा की भावना पैदा होती है। बच्चों व परिवार के साथ रिश्ते भी बिगडते हैं।
5. दिन में 30-40 मिनट अपने लिए भी निकालें। पत्‍‌नी, मां, नौकरीपेशा स्त्री होने के साथ ही आप इंसान भी हैं, यह न भूलें। कोई शौक पैदा करें। जैसे संगीत, नृत्य या पुस्तकें..। हर समय सिर्फ घर की सफाई के बारे में न सोचें, वह कभी ज्यादा साफ नहीं होगा।
6. खुद को विफल न समझें। बच्चों के खराब मा‌र्क्स आने या घरेलू अव्यवस्था के लिए अकेली आप ही जिम्मेदार हैं, इस भावना को मन से निकालें। अपने कामों में घर के अन्य सदस्यों की भी मदद लें।
7. अपनी स्थिति को दूसरे की नजर से न परखें। यह न सोचें कि आपकी कोई दोस्त या संबंधी आपसे बेहतर मां या पत्नी है। जो भी काम आप कर रही हैं, उसे महत्वपूर्ण समझें।
8. एकरसता जीवन को बोझिल बनाती है। कभी कुछ ऐसा करें, जो नीरसता तोडे। स्पा लें, पार्लर चली जाएं, हेयर स्टाइल बदलें..या म्यूजिक कंसर्ट में शिरकत करें।
याद रखें : सारे काम किए जा सकते हैं, लेकिन सारे काम एक बार में नहीं किए जा सकते। स्त्री परिवार का दिल है। उसे परफेक्ट होने की नहीं, केवल मां बनने की जरूरत है।
इंदिरा राठौर
 

इंकार से इतना डर क्यों


भय के लक्षण
1. माता-पिता यदि बच्चे की दूसरों से तुलना करने लगें तो उसे लगता है कि वह अच्छा नहीं है। यह बात उसके मन में बैठ जाती है। समय के साथ यह भय फैलता है।
2. व्यक्ति अपने दायरे में सिमटने लगता है, वह अपनी भावनाएं शेयर नहीं कर पाता।
3. वह धीरे-धीरे अपना व्यक्तित्व खोने लगता है। वह परफेक्ट व्यक्ति की तरह बोलने-काम करने की कोशिश करता है।
4. वह किसी को न नहीं कह पाता। साथ ही दूसरों को नजदीक लाने से घबराता है।
5. वह अपनी छवि दूसरों के हिसाब से गढने लगता है। खुद को स्वीकार नहीं पाता।
कैसे निकलें इस डर से
दिल्ली की वरिष्ठ मैरिज काउंसलर डॉ. आर. वसंता पत्री कहती हैं, शुरू में ही इस भय से उबरने की कोशिश न की जाए तो बाद में व्यवहार संबंधी दिक्कतें भी पैदा हो सकती हैं। कुछ टिप्स इससे उबरने के-
1. अपने बारे में अपनी राय बदलें। अगर कोई अपनी बातों से आपको आहत करता है या चोट पहुंचाता है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आप खुद को उसकी नजर से देखने लगें। दूसरों की राय को महत्व देने से पहले यह जानना जरूरी है कि आपकी अपने बारे में क्या राय है।
2. इनकार के भय को चुनौती मानें। अपने विचारों को वास्तविकता के धरातल पर सोचें तो इस भय को खत्म करने में मदद मिलेगी।
3. भय के बारे में लिखें। जिन चीजों से भय लगता है, उन्हें महसूस करें कि यह भय किस स्तर पर है। बेहतर तरीका है कि एक कागज-कलम लेकर लिखें कि भविष्य के बारे में सोचते हुए क्या महसूस करते हैं।
4. यह लिखने के बाद कि कौन सी बात आपको भयग्रस्त करती है, अगला कदम यह सोचने का है कि आपके भय कितने वास्तविक हैं। किसी खास घटना या स्थिति में ऐसा लगता है कि भय वास्तविक है, लेकिन वह समय गुजरने के बाद वे भय निरर्थक भी लगने लगते हैं।
करीबी लोग भी दें सहयोग
एक वेबसाइट के सर्वेक्षण के अनुसार करीबी लोगों के प्रयास भी व्यक्ति को इस भय से उबरने में मदद कर सकते हैं-
1. उसे अपनी बात रखना सिखाएं।
2. अपनी लाइफस्टाइल बदलना और अपने प्रति ईमानदार रहना सिखाएं।
3. उसे अपनी भावनाएं शेयर करने को कहें।
4. उससे एक सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार करें। उसे खुद के प्रति आशावादी बनने के लिए प्रोत्साहित करें।
5. कभी भी उसे नजरअंदाज न करें। उसकी बात ध्यान से सुनें और उसे महत्व दें।
स्त्रियों में अधिक होता है यह भय
ऐसे पुरुष व स्त्रियां, जो बेहद खूबसूरत दिखना चाहते हैं, रिजेक्शन के भय से ज्यादा ग्रस्त होते हैं। इसका कारण है कि वे हमेशा अपने साथियों से अपनी तुलना करते रहते हैं। साइंस डेली में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक खूबसूरत दिखने का दबाव पुरुषों की तुलना में स्त्रियों पर अधिक होता है। ऐसी लडकियां जो खूबसूरत अभिनेत्रियों को आदर्श मानती हैं, उनमें यह सौंदर्य-सतर्कता अधिक होती है। जाहिर है उनमें रिजेक्शन का भय भी अधिक होता है।

और मान्यता मिल गई..!!

हमारी पडोसन मुझे भयंकर गालियां देती हैं। खरी-खोटी सुनाती हैं। फिर चाहे मैं अपना अपने घर के सामने स्कूटर साफकरूं या पत्नी के साथ बतियाऊं। उन्हें मुझे गाली देना पसंद है। मैं बहुत परेशान रहा। जैसी भयानक वह हैं, उतनी ही खराब गालियां देती हैं। जब भी कहीं जाने के लिए प्रसन्न मन से घर से बाहर निकलता हूं, वह खलल डाल देती हैं। कोई जमाना था, जब मैं इससे बहुत अपसेट हो जाता था। वह ऐसा क्यों करती हैं, हम दंपती अभी तक नहीं समझ सके हैं। आखिरकार हमने उनकी इस आदत को मान्यता प्रदान कर दी। वह अब गाली देती हैं तो हमें बुरा नहीं लगता। हम अपनी दिनचर्या पर उनकी गालियों का असर महसूस नहीं करते। मुहल्ले-पडोस के लोग मान चुके हैं कि वे हैं ही ऐसी। बल्कि अब जब वह शांत रहती हैं तो मोहल्ला अशांत हो जाता है। सूना-सूना सा लगने लगता है।
मान्यता प्रदान करने का अब पूरा असर दिखने लगा है। अब बुराई-बुराई सी नहीं लगती। गाली-गाली सी नहीं लगती। उनकी गाली का असर जाता रहा।

शास्त्रों में सामान्यत: संसार में मिलने वाले सुख एवं दु:ख के तीन भेद बताए गए हैं:

आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक। आज संसार में मनुष्य इन्हीं तीन प्रकार के दु:खों से बचने के लिए सुख की खोज कर रहा है। सुख की तलाश में कभी सिनेमाघरों में जाता है तो कभी हिल स्टेशन इत्यादि पर भ्रमण करता है। कभी शराब का सेवन करता है और कभी भोगों को भोगता है। परंतु मनुष्य का यह प्रयास सुख की प्राप्ति नहीं, अपितु दु:ख को भूल जाने की चेष्टा मात्र है।  इसलिए किसी महापुरुष ने कहा है, दु:ख को भूल जाना एक बात है, परंतु सुख की प्राप्ति हो जाना कुछऔर। इससे यह स्पष्ट होता है कि सुख-दु:ख का अनुभव मनुष्य की आंतरिक अवस्था पर निर्भर है। महत्व इस बात का नहीं कि दूसरों का व्यवहार हमारे प्रति कैसा है, अपितु इसका है कि हम दूसरों के व्यवहार को किस दृष्टि से लेते हैं।
संत महापुरुष समझाते हैं कि सुख का संबंध तो मनुष्य की आंतरिक अवस्था से जुडा है। जैसे कैकेयी के वरदान मांगने से प्रभु श्रीराम को चौदह वर्ष वनवास के लिए प्रस्थान करना पडा। रास्ते में वे सीता जी और लक्ष्मण जी सहित निषादराज के पास ठहरे। संध्या समय प्रभु श्रीराम को पत्थरों की शैया पर लेटे देख निषादराज की आंखों में आंसू आ गए और वे लक्ष्मण की तरफ देखते हुए कहते हैं-
कैकयनंदिनी मंद मति कठिन कुटिलपनु कीन्ह। जेहिं रघुनंदन जानकिहि सुख अवसर दुखु दीन्ह।। राजा कैकेय की बेटी कैकेयी बहुत ही मंदबुद्धि है, जिसने प्रभु श्रीराम को सुख के अवसर पर दुख दे दिया। महाराज दशरथ तो श्रीराम को राज्य देने जा रहे थे, परंतु कैकेयी की कुटिलता के कारण प्रभु श्रीराम एवं जानकी जी को वन जाना पड रहा है। लेकिन लक्ष्मण की दृष्टि इससे भिन्न थी। वे निषादराज से कहते हैं कि आप जो कैकेयी को दोष दे रहे हैं यह उचित नहीं। इसमें कैकेयी का कोई दोष नहीं है। यह सब तो कर्मो का फल है-
काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता।।
लक्ष्मण जी कहते हैं कि कोई किसी को सुख-दु:ख देने वाला नहीं है। यह तो भ्राता श्रीराम अपने ही कर्म का फल भोग रहे हैं। निषादराज लक्ष्मण जी की तरफ आश्चर्यचकित नेत्रों से देखते हैं कि क्या आप कहना चाहते हैं कि प्रभु श्रीराम को स्वयं के द्वारा किए गए कर्मो के कारण दु:ख भोगना पड रहा है। लक्ष्मण कहते हैं कि मैंने ऐसा कब कहा कि प्रभु श्रीराम दुख भोग रहे हैं। मैंने तो यह कहा कि वे अपने कर्म का फल भोग रहे हैं, परंतु उन्हें इस अवस्था में देखकर कष्ट किसे हो रहा है? इस समय दुखी कौन दिखाई दे रहा है, आप या प्रभु श्रीराम? निषादराज ने कहा कि दुखी तो मैं ही हूं, प्रभु को इस प्रकार पत्थरों की शैया पर लेटे हुए देख कर मुझे बहुत कष्ट हो रहा है। लक्ष्मण जी कहते हैं कि यदि आपको कष्ट हो रहा है तो आपके ही कर्मो का फल होगा। आपकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। परंतु प्रभु श्रीराम तो आनंदित नजर आ रहे हैं और जहां आनंद हो, हर्ष हो वहां शोक कैसा?
स्वयं प्रभु श्रीराम भी जब अयोध्या में माता कौशल्या जी के पास गए तो माता कौशल्या ने प्रेम सहित श्रीराम को फल एवं मिष्ठान्न खाने के लिए दिया। प्रभु श्रीराम माता कौशल्या जी को हर्षित देखकर कहते हैं कि माता आप तो मेरे युवराज बनने के समाचार से इतना प्रसन्न हैं। परंतु जब आपको यह पता लगेगा कि मुझे राजा बना दिया गया है तब आपकी प्रसन्नता कितनी बढ जाएगी। माता कौशल्या आश्चर्यचकित नेत्रों से प्रभु श्रीराम की ओर देखते हुए कहती हैं कि क्या राजा बना दिया है? प्रभु श्रीराम कहते हैं कि हां, मां मुझे राजा बना दिया है। पितां दीन्ह मोहि कानन राजू। पिताजी ने मुझे वनों का राज्य दे दिया है। अयोध्या के सिंहासन पर बैठकर तो मैं केवल शोभा की वस्तु बन जाता। अत: मेरी आवश्यकता इस समय वनों में है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि सुख-दु:ख का अनुभव मनुष्य की आंतरिक अवस्था पर निर्भर है। महत्व इस बात का नहीं कि दूसरों का व्यवहार हमारे प्रति कैसा है, अपितु इसका है कि हम दूसरों के व्यवहार को किस दृष्टि से लेते हैं। आज के भौतिक युग में अधिकतर मनुष्य केवल सांसारिक धन-संपत्ति इत्यादि को ही सुख का हेतु मानते हैं। परंतु यह आवश्यक नहीं कि केवल सांसारिक धन-संपत्ति के द्वारा ही हमें सुख की प्राप्ति हो जाए। यह मानव का सबसे बडा भ्रम है कि उसके पास अपार धन संपत्ति है, कारोबार चल रहे हैं, किसी भी प्रकार के पदार्थ की कोई कमी नहीं, इसलिए वह सुखी है। आज इसी मृगतृष्णा में मानव भटक रहा है, जबकि सांसारिक वस्तुओं में सुख नहीं है। कई बार मनुष्य के सामने ऐसी परिस्थिति भी आती है कि संसार में मिलने वाला कष्ट भी हमें सुख प्रदान कर देता है। संसार से मिलने वाला वह दुख भी हजार सुखों से महान है, जो हमें परमात्मा से मिला दे। महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर राजा बन गए, तब भगवान श्रीकृष्ण कुंती के पास गए और द्वारिका जाने के संबंध में बताते हुए पूछा कि बुआ मांगो तुम्हें क्या चाहिए। कुंती ने कहा कि संसार में जितने दुख हैं, सब मुझे दे दो। कुंती से ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण ने कहता कि बुआ आप क्या मांग रही हैं? पूरे जीवन आपने दुख ही तो देखे हैं, फिर भी आप दुख मांग रही हैं। कुंती ने कहा- आज तक दुख था, संकट थे, तो आप हमारे साथ थे और आज जब यह राज्य मिला तो आप हमें छोड कर जा रहे हैं। ऐसे सुख का क्या लाभ जो हमें आपसे दूर कर दे। संत सहजोबाई कहती हैं -
सुख के माथे सिल पडे जो नाम हृदय से जाए।
बलिहारी वा दुख के रहे नाम लौ लाय।।
उस सुख का क्या लाभ जो हमें प्रभु से दूर ले जाए।
आचार्य अत्रि की पुत्री अपाला के शरीर पर कुछ दाग थे। उम्र के साथ-साथ दाग बढते जा रहे थे। ये दाग अत्रि को चिंता में डाल रहे थे। अत: उन्होंने अपाला की शादी अपने ही एक शिष्य के साथ कर दी। शादी के बाद कुछ समय तो वह खुश रही। परंतु जैसे-जैसे समय गुजरता गया, रोग बढता गया। साथ ही अपाला से पति की दूरी भी बढती गई। एक दिन पति ने उसे घर से निकाल दिया। वह रोती हुई जंगल की ओर चल पडी। रास्ते में उसे एक महात्मा मिले। उन्होंने अपाला को समझाया कि यह संसार तो दुख और स्वार्थ से भरा है। इस मायामय जगत में कोई सुखी नहीं है। प्रत्येक मनुष्य सुख प्राप्ति की इछा से सांसारिक कर्मो में लिप्त है। हे अपाला! यह रोग तो पिछले जन्मों में किए गए कर्मो का ही फल है। कर्मो के इस बंधन से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय है-नाम। मनुष्य जीवन का महत्व तो तभी है, जब जीव प्रभु की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो। क्योंकि केवल वह परमात्मा ही परम सुखदायक है और जीव को इस जगत के दुखों और बंधनों से छुटकारा दिलाने में पूरी तरह समर्थ है। इसलिए तू आत्मज्ञान को जान और उस प्रभु को प्राप्ति कर जो तुझे परम सुख एवं शांति प्रदान करने वाला है।
इसके बाद अपाला दिन-रात प्रभु के ध्यान में ही लीन रहने लगी। साधना करते कई साल बीत गए। अपाला की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे परमात्मा ने दर्शन दिए। प्रभु ने कहा- हे अपाला! तुझको इस रोग ने बहुत दुख दिया। अगर तू कहे तो मैं इस रोग को ठीक कर दूं। अपाला ने कहा- प्रभु! इसी रोग के कारण तो मुझे संसार की वास्तविकता का पता चला। इस रोग ने ही मुझे संसार से तोड कर आप से जोडा। अत: आप यदि मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो अपने चरणों की प्रीति प्रदान करें। अपाला की भक्ति की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। वह पूरी तरह स्वस्थ भी हो गई। यह खबर जब अपाला के पति के पास पहुंची तो वह भी पहुंचा। उसने अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और घर चलने का आग्रह किया, परंतु अपाला ने इंकार कर दिया। अपाला ने कहा कि आपने पति होते हुए भी मेरा परित्याग कर दिया, परंतु परमात्मा ने मुझे मेरे रोगी शरीर में भी अपनी भक्ति प्रदान कर चरणों से जोडा। अत: अब तो यह जीवन प्रभु के चरणों में ही समर्पित हो चुका है।
ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि जब भक्तों ने संकट के समय प्रभु को याद किया, प्रभु ने उनकी रक्षा की। अकसर मनुष्य दुख के समय ही प्रभु को याद करता है। सुख के समय सांसारिक सुखों को ही सब कुछ समझ कर आनंदित होता रहता है। कबीर दास जी कहते हैं-
दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुख काहे को होय।।
दु:ख के समय में तो सभी प्रभु को याद करते हैं। जब-जब भी जीव पर कष्ट आता है तभी वह प्रभु को पुकारता है, परंतु जैसे ही सुख मिलता है तभी प्रभु को भूल जाता है। कबीर जी कहते हैं कि यदि सुख के समय भी प्रभु को याद रखें तो दु:ख हो ही क्यों?
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते। अत: हम यदि जीवन में शाश्वत सुख एवं शांति की प्राप्ति करना चाहते हैं तो हमें जरूरत है कि हम पूर्ण सतगुरु की शरण में पहुंचकर आत्मज्ञान को प्राप्त करें। तभी हम जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
आशुतोष जी महाराज
 

खुश रहना है बहुत आसान

1. सुबह अपने लिए थोडा समय जरूर निकालें ताकि आपके मस्तिष्क में अच्छे विचार आ सकें। इसके लिए आंखें बंद करके सकारात्मक भाव वाली किसी कविता या प्रार्थना का सस्वर पाठ करते हुए गहराई से उसका अर्थ समझने का प्रयास करें। इस दौरान नाक से सांस लें और उसे मुंह से वापस छोडें। दिन भर तनावमुक्त रहने के लिए यह अच्छा व्यायाम है।
2. हाल ही में किए गए सर्वेक्षणों से यह तथ्य सामने आया है कि जो लोग सुबह का नाश्ता नहीं करते उनमें शारीरिक और मानसिक तनाव बहुत अधिक होता है और जो लोग सुबह के नाश्ते में पौष्टिक चीजें जैसे स्प्राउट्स, फल, जूस आदि लेते हैं उन्हें किसी तरह के तनाव का अनुभव नहीं होता। नाश्ते में मौजूद जिंक, विटमिन सी, विटमिन बी और मैग्नीशियम आपके शरीर को तनाव के नकारात्मक असर से लडने की ऊर्जा देते हैं।
3. अपने शारीरिक और मानसिक तनाव के लक्षणों को पहचानने की कोशिश करें कि किस स्थिति में आप स्वयं को ज्यादा तनावग्रस्त महसूस करती हैं। जब कभी तनाव महसूस हो तो इसे दूर करने के लिए आप यह करें-अपनी पीठ बिलकुल सीधी रखें, पेट के निचले हिस्से को भीतर की ओर हलका सा सिकोडें और वापस उसी अवस्था में छोड दें। कम से कम चार-पांच बार ऐसा करने से आप स्वयं को तनावमुक्त महसूस करेंगी। इससे सांस सही ढंग से चलने लगती है।
4. कंप्यूटर पर लगातार काम करते-करते आंखें थक जाती हैं। इस समस्या से बचने के लिए कम से कम हर तीन घंटे के अंतराल पर अपनी हथेलियों से दो मिनट के लिए पलकें बंद करें और फिर धीरे-धीरे आंखें खोलें। इससे आराम महसूस होगा।
5. हंसना तनाव दूर करने का सबसे आसान उपाय है। इसलिए टीवी पर गंभीर कार्यक्रमों के बजाय कोई कॉमेडी शो देखें।
6. संगीत तनाव दूर करने का सबसे बेहतर जरिया है। इसलिए वीकएंड में न सिर्फ अपनी पसंद का संगीत सुनें, बल्कि खुद भी खुले गले से गुनगुनाएं। वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से साबित हो चुका है कि गाने से मस्तिष्क तक ऑक्सीजन का प्रवाह तेज गति से होता है और इससे व्यक्ति तनावमुक्त महसूस करता है।